मिलखा सिंह (उड़न सिख़) का जन्म २० नवंबर १९२९ को गोविंदपुर जो अब पाकिस्तान में है जन्मे एक भारतीय धावक जिन्होंने रोम के १९६० ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के १९६४ ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। वे भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट्स में से एक थे। भारत के विभाजन के बाद की अफ़रा तफ़री में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप को खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन से पाकिस्तान से भारत आए। और लगातार वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते रहे जबतक उन्हें पहचान नहीं मिल गयी।
यूं तो मिल्खा सिंह जी ने भारत के लिए कई पदक जीते, लेकिन रोम ओलंपिक में उनके पदक से चूकने की कहानी लोगों को आज भी याद है।
कार्डिफ़, वेल्स में १९५८ के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद उन्हें लोग जानने लगे। इसी समय जब उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन दौड़ में मिलखा सिंह ने अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया। अधिकांश दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे। इस जीत के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने उन्हें ‘फ्लाइंग सिख’ की उपाधि से नवाजा।
भारत सरकार ने १९५९ में उन्हें पद्म श्री की उपाधि से भी सम्मानित किया। उनका पद्य श्री के आगे का भारतीय नागरिक सम्मान नहीं मिलना यह दर्शाता है की आज भी सरकार हमारे एकल खेल के लिए कितनी गंभीर है।
कभी जब उनसे ८० दौड़ों में से ७७ में मिले अंतरराष्ट्रीय पदकों के बारे में पूछा जाता था तो वे कहते थे, “ये सब दिखाने की चीजें नहीं हैं, मैं जिन अनुभवों से गुजरा हूँ उन्हें देखते हुए वे मुझे अब भारत रत्न भी दे दें तो मेरे लिए उसका कोई महत्व नहीं है।”
आप हमेशा हमारे दिल में रहेंगे चाहे आप कही भी रहे पूरा भारत और भारतीय आपके साथ हमेशा अपने दिल में रखेगा। मिल्खा सिंह एक ऐसी शख्सियत थे जिनके बारे में शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता है वे एक संस्थान है और आगे भी भारतीय धावक समुदाय में उनकी पहचान एक पितामह की ही रहेगी। हमने अच्छे अच्छे एथलीट पैदा किये लेकिन बहुत कम उस श्रेणी में आते है जिस श्रेणी के मिल्खा सिंह जी रहे।
उनकी आखिरी ख्वाहिश है कि जो गोल्ड मेडल उनसे रोम ओलंपिक में गिर गया था, वह मेडल कोई भारतीय जीते। वे दुनिया छोड़ने से पहले भारत को ओलंपिक में एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीतते देखना चाहते थे। लेकिन आज भी हम या हमारी सरकार कितनी गंभीर है इसी से पता चलता है की आज भी टोकियो ओलंपिक्स जाने वालो के लिस्ट में व्यक्तिगत खेलों के धावक ग्रुप में हमारे खिलाड़ी २० किमी और ३००० मीटर में ही भाग ले पाएंगे।
धन्यवाद आपका!
भारत और भारतीय सदैव आपके आभारी रहेंगे।
शिक्षा: बी.ए. (अंग्रेजी), सूचना प्रौद्योगिकी स्नातक, कंप्यूटर एप्लीकेशन में उन्नत स्नातकोत्तर डिप्लोमा, डिजिटल मार्केटिंग में मास्टर, डिजिटल मार्केटिंग में सर्टिफिकेट, कैथी, प्राकृत, ब्राह्मी और संस्कृत में सर्टिफिकेट
लेखन विधा: हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कैथी में कविता, लेख, कहानी, आलोचना, पुस्तक समीक्षा आदि प्रकाशित
प्रकाशित कृतियां: व्यक्तिगत कविता संग्रह “रजनीगंधा” के साथ-साथ कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में 200 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान और पुरस्कार: राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान, श्री मंगरेश डबराल सम्मान, श्री उदय प्रकाश सम्मान, मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान, एसएसआईएफ ग्लोबल पीस अवार्ड 2023, मानवाधिकार पुरस्कार 2023, राष्ट्र सेवा पुरस्कार 2024, सामाजिक प्रभाव पुरस्कार 2024 और विभिन्न संगठनों द्वारा 20 से अधिक पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित।