आज भी कई लोग है जिन्हें उनके हिस्से का न्याय या तो नही मिलता है या इतनी देर हो जाती है कि उस न्याय का कोई महत्व नही रह जाता है। जैसा उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है न्याय मिलने की देरी तो न्याय नही मिल पाने के बराबर है।
जी आज मैं जय भीम नामक मूवी के बारे में बात कर रहा हूँ जो इस वस्तु स्थिति को भली भांति दर्शाता भी और आपके अंदर के मानवता को भी झकझोरने का प्रयास करता है। अगर आप संवेदनशील है तो यह मूवी आपको अंदर तक झकझोर देगी। हाँ मेरे कई जानने वाले इस मूवी को इसीलिए नही देखेंगे क्योंकि इसका टाइटल उनकी विचारधारा को अच्छा नही लगेगा। यह अलग बात है कि वे उसी भीम के बनाये संविधान की दुहाई देते जरूर मिल जाएंगे। लेकिन मैं यकीन दिलाता हूँ यह मूवी एक मिल का पत्थर साबित होने जा रही है क्योंकि इस मूवी ने हमारी लचर न्याय व्यवस्था जो नीचे से शुरू होकर ऊपर जाती है उसपर करारा प्रहार करती है।
मूवी में निर्देशक की पकड़ लाजवाब दिखाई पड़ती है और पूरी मूवी एक लय में दिखाई पड़ती है कही भी मूवी आपको ना तो ज्यादा धीमा या ज्यादा तेज नजर आएगी। संगनी का किरदार ऐसा किरदार है जो कइयों को प्रेरणा देगी, नायक ने अपने हिस्से का किरदार बखूबी निभाया है ऐसा लगता है वह इसी किरदार के लिए बना हो, लेकिन संगनी का किरदार तो वाकई में हर लिहाज से 5 में से 5 अंक पाने लायक है हर पल वह इतनी सशक्त नजर आयी है कि आप उसके बिना इस मूवी की कल्पना नही कर सकते है और मूवी भी उसके आस पास ही घूमती है। लेकिन मुझे नाम से थोड़ा ताज्जुब हुआ कि ऐसा नाम चुनने के पीछे की वजह क्या हो सकती है। लेकिन इस नाम से कई दर्शक जो उन्हें देखने का सोच रहे होंगे वे नही देखेंगे। यह मूवी अंबेडकर पर नही बल्कि दलितों पर अत्यचार को लेकर है।
खैर आते है मूवी पर मुझे लगता है यह मूवी अबतक की सर्वश्रेष्ठ मूवी में से एक हो सकती है। सिर्फ इसीलिए नही की यह दलितों पर बनी मूवी है बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह हमारे न्याय व्यवस्था में बैठे लोगों के चरित्र पर सवाल उठाता है कि हमारा सिस्टम किस कदर भ्रष्ट और सड़ा हुआ नजर आता है जिसमे लगता है सब कुछ, कुछ लोगों के हाथों की कठपुतली मात्र है जिसमें एक गरीब और ईमानदार व्यक्ति के लिए जीने की मुक्कमल और आसान रास्ता भी नही छोड़ता की वह अपने हिस्से का कष्टमय जीवन भी पूरी ईमानदारी या अपने पूरे सम्मान के साथ जी सके। ऐसी कई मूवी आपने देखी होगी लेकिन यह मूवी आपको याद दिलाता है कि एक आम आदमी कितना कमज़ोर है इस भ्रष्ट सिस्टम के आगे उसकी एक नही चलती है जब जैसे चाहे सिस्टम उसको चलने को मजबूर कर देता है लेकिन यह मूवी संगनी के किरदार को देखते हुए एहसास दिलाता है की सिस्टम चाहे कितना भी भ्रष्ट या सड़ा गला हो गया हो लेकिन उसके कोने के एक हिस्से में कुछ ईमानदार लोग है जो आपके साथ हुए अन्याय को लेकर आगे आपके साथ कि लड़ाई लड़ने को तैयार रहता है।
सिस्टम लोगों से मिलकर बना है वह भी इसी समाज का हिस्सा है बस कोशिश होनी चाहिए कि जब भी सिस्टम में कुछ भी गलत होता देखे आप न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान रखते हुए उसके साथ चलते हुए अपनी बात हमेशा उठाए यही इस मूवी का मूल उद्देश्य है।
धन्यवाद। जय भीम।
शिक्षा: बी.ए. (अंग्रेजी), सूचना प्रौद्योगिकी स्नातक, कंप्यूटर एप्लीकेशन में उन्नत स्नातकोत्तर डिप्लोमा, डिजिटल मार्केटिंग में मास्टर, डिजिटल मार्केटिंग में सर्टिफिकेट, कैथी, प्राकृत, ब्राह्मी और संस्कृत में सर्टिफिकेट
लेखन विधा: हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कैथी में कविता, लेख, कहानी, आलोचना, पुस्तक समीक्षा आदि प्रकाशित
प्रकाशित कृतियां: व्यक्तिगत कविता संग्रह “रजनीगंधा” के साथ-साथ कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में 200 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान और पुरस्कार: राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान, श्री मंगरेश डबराल सम्मान, श्री उदय प्रकाश सम्मान, मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान, एसएसआईएफ ग्लोबल पीस अवार्ड 2023, मानवाधिकार पुरस्कार 2023, राष्ट्र सेवा पुरस्कार 2024, सामाजिक प्रभाव पुरस्कार 2024 और विभिन्न संगठनों द्वारा 20 से अधिक पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित।