बिनु निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अँग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन,
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
~ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
पुरस्कारों के नाम हिन्दी में हैं
हथियारों के अंग्रेज़ी में
युद्ध की भाषा अंग्रेज़ी है
विजय की हिन्दी।
~ रघुवीर सहाय
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।
~ मुनव्वर राना
ऊपर तीन अलग अलग समय के लोगों द्वारा हिंदी को परिभाषित करने की कोशिश है उसे समझने की आवश्यकता है। तभी आप हिंदी की महत्ता को समझ पायेंगे।
१४ वे शब्द जो मेरे लिए है ख़ास
१) मां
२) जीवन
३) दुलार
४) बचपन
५) स्नेह
६) जवानी
७) प्यार
८) अभिलाषा
९) स्पर्श
१०) क्रोध
११) अपमान
१२) अलगाव
१३) मौत
१४) मिट्टी
अगर हर रोज आप खुद से और अपने लोगों से करीब दस हिंदी शब्दों का प्रयोग करके भी बात कर लें तो हमारा हिंदी के प्रति प्यार दिख जायेगा और हिंदी भाषा के साथ थोड़ा इंसाफ हो जायेगा।
मुझे पता है मैं बिहारी हूँ मेरी हिंदी के व्याकरण के हिसाब से कुछ कमजोरियां भी है और मैं उसे मानता भी हूँ क्या आप मानते है? आप नहीं मानेंगे क्योंकि आपको लगता है आपकी ही हिंदी शुद्ध है, समस्या है और मुझे लगता है आज जो हिंदी लिखी या बोली जाती है। वह हर क्षेत्र में स्थानीय तौर पर बोली जानी वाली बोलियों का सम्मिश्रण है आप बिहार के सीमांचल में जायेंगे तो आपको हिंदी में ठेठी जो अंगिका का ही अप्रभंश बोलते है उसका मिश्रण मिलेगा अगर आप भागलपुर परिक्षेत्र में होंगे तो वहां अलग है अगर आप भोजपुर में है तो वहां अलग है अगर आप मिथिला में है तो वहां अलग है अगर आप नेपाल जाएँ तो आपको अलग मिलेगी। उसी प्रकार मध्य प्रदेश में अलग अलग परिक्षेत्र के हिसाब से आपको सम्मिश्रित ही मिलेगी। अगर आप उत्तर प्रदेश की बात करे तो आपको उसमे ब्रज भाखा, बुन्देली, चंदेली आदि का भी सम्मिश्रण मिलेगा। अगर आप हरियाण जाएँ तो वहां की अलग ही हिंदी है अगर आप राजस्थान जाएँ तो वहां की हिंदी अलग है तो सवाल है हिंदी है क्या? हिंदी बोलने में और लिखने में अलग अलग हो जाती है क्योंकि बोलने में बोली का सम्मिश्रण होता है लेकिन लिखने में तो व्याकरण के प्रयोग के कारण एक ही रहता है तो इसीलिए किसी के हिंदी बोलने का मखौल उड़ाने से पहले यह सोचियेगा की क्या आप सही और शुद्ध हिंदी बोल पाते है? मेरे जैसे बिहारी जो मैं को आज भी दिल्ली में इतने साल रहने के बाद भी हम ही बोलता है मुझे पता है व्याकरण के तौर पर मैं गलत हूँ लेकिन हम का मतलब सिर्फ मेरी बात नहीं होती है पुरे कुटुंब की बात होती है।
सवाल सिर्फ अपने आप से पूछने पर ही जवाब मिल सकता है बांकी सब तो छलावा है क्योंकि अगर कोई कहता है कि आप गलत हिंदी बोल रहे है तो मानना पड़ेगा की मैं गलत बोल रहा हूँ तभी सुधार संभव है लेकिन हिंदी हार्टलैंड के नाम से मशहूर उत्तर भारत के हिंदी भाषी लोग सिर्फ अपने आपको को ही शुद्ध हिंदी बोलने वाला मानते हो तो सुधार की गुंजाईश कम रह जाती है।
हिंदी को जीवन में अपनाए तभी हिंदी की सार्थकता साबित हो पायेगी सभी भाषाओ का सम्मान करना सीखे, खासकर हिंदी अगर आपकी मातृभाषा है तो यह बहुत जरुरी हो जाता है। ✍
शिक्षा: बी.ए. (अंग्रेजी), सूचना प्रौद्योगिकी स्नातक, कंप्यूटर एप्लीकेशन में उन्नत स्नातकोत्तर डिप्लोमा, डिजिटल मार्केटिंग में मास्टर, डिजिटल मार्केटिंग में सर्टिफिकेट, कैथी, प्राकृत, ब्राह्मी और संस्कृत में सर्टिफिकेट
लेखन विधा: हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कैथी में कविता, लेख, कहानी, आलोचना, पुस्तक समीक्षा आदि प्रकाशित
प्रकाशित कृतियां: व्यक्तिगत कविता संग्रह “रजनीगंधा” के साथ-साथ कई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में 200 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
सम्मान और पुरस्कार: राष्ट्रीय हिंदी सेवा सम्मान, श्री मंगरेश डबराल सम्मान, श्री उदय प्रकाश सम्मान, मुंशी प्रेमचंद स्मृति सम्मान, एसएसआईएफ ग्लोबल पीस अवार्ड 2023, मानवाधिकार पुरस्कार 2023, राष्ट्र सेवा पुरस्कार 2024, सामाजिक प्रभाव पुरस्कार 2024 और विभिन्न संगठनों द्वारा 20 से अधिक पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित।