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जोशीमठ सिर्फ एक ऐतिहासिक नगरी नहीं है धार्मिक नगरी भी है जो बदरीनाथ का द्वार भी है। यहाँ से लोग  केदारनाथ, बदरीनाथ और हेमकुंड साहिब जाते है इसको आप बेसकैम्प भी मान सकते है। गैज़ेटीयर ऑफ उत्तराखंड की माने तो 1881 की जनगणना के हिसाब से यहाँ 500 से भी कम लोग रहते थे और आज 17 हजार के करीब है।

प्रकृति अपने हिसाब से अपने हर चीज में सुधार या संतुलन लाने का का हर संभव प्रयास करती है आज जो जोशीमठ की हालत है इसके लिए प्रकृति कम जिम्मेदार है जितना मानवीय कारण। चमोली जिले में बसा यह शहर काफी पुराना है इसका अस्तित्व एक सराय की रूप में संसार के सामने तब आया जब जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने वहाँ पर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त की और ज्ञान प्राप्त करने के बाद दर्शन की पूरी परिभाषा लिखी। आज अगर भारतीय दर्शन पढ़ना हो तो उसके बिना दर्शन पूर्ण नही माना जा सकता है। इस शहर का बहुत पुराना इतिहास रहा है लेकिन विकास के नाम पर जिस तरीके से आँख मूँदकर इस सजीव पहाड़ के साथ खिलवाड़ किया गया है यह त्रासदी उसी का नतीजा है। आज से 50 साल पहले तक जिस प्रकार पहाड़ो पर घर बनाये जाते थे आज उसकी स्थिति भी काफी बदली है जिसकी वजह से भी इन कच्चे पहाड़ो पर अतिरिक्त दवाब बढ़ा है। जहाँ सामान्तया दो मंजिला मकान बना होता था वहाँ लोगों ने चार मंजिला से लेकर दस मंजिला होटल खड़ा कर दिया। जो पहाड़ आज भी जीवित पहाड़ो में गिना जाता है और जो मलबे पर बना पहाड़ हो उसके लिए ऐसी क्षमता को सहन करने की शक्ति धीरे धीरे जाती रही। आज की स्थिति सिर्फ पिछले 50 सालों की नही है जब मिश्रा समिति की 1976 में रिपोर्ट आई थी उस रिपोर्ट में जो-जो कहा गया था अक्षरशः वही हो रहा है तो क्या अब सरकारों को भी सचेत नही हो जाना चाहिए कि पहाड़ो या प्रकृति से किस हद तक छेड़छाड़ संभव है इसको जाने बिना देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।

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आजकल सुषमा स्वराज जब विपक्ष की नेता थी तब की एक वीडियो वायरल हो रही है उन्होंने जो बातें संसद में कही थी आज दशक बीत जाने के बाद भी उसपर कोई भी केंद्र की सरकार हो या उत्तराखंड की सरकार हो किसी भी प्रकार से विचार करना तक उचित नही समझा। इसी संदर्भ में उमा भारती जी के भी बयान को देखा जाना चाहिए जब उन्होंने कहा था कि गंगा की अविरलता को रोकने के प्रयास पर रोक लगनी चाहिए गंगा सिर्फ एक नदी नही है यह करोड़ो लोगों के लिए कई प्रकार से जीवनदायिनी साबित हुई है अगर हम इसकी अविरलता को बांधने का प्रयास करेंगे तो कही ना कही हमें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। शायद इसी वजह से केदारनाथ जैसा प्रलय आता रहा है और उत्तराखंड के पहाड़ो को बार बार हिलाकर मानो यह कहता रहा है कि हम अभी जीवित है हमें मरा हुआ समझने की भूल ना करो नही तो हम यूँ ही दरकते रहेंगे और आप विस्थापित होते रहेंगे। पहले टिहरी विस्थापित हुआ अब जोशीमठ विस्थापित होने की कगार पर है। हाल ही में इसरो द्वारा जारी रिपोर्ट आँख खोलने वाला साबित हो सकता है जिसमें कहा गया है कि जोशीमठ का पहाड़ धीरे धीरे धँस रहा है। क्या यह हमारे लिए चेतावनी नही है?

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जोशीमठ का दरकना हमारे लिए प्रकृति की चेतावनी है कि हम किस हद तक प्रकृति का दोहन कर सकते है। सरकारों से निवेदन है कि वे चेत जाए नही तो एक दिन ऐसा आएगा जब पूरी सभ्यता नष्ट हो जाएगी और हम मूक दर्शक बने रहने के सिवा कुछ नही कर पाएंगे। जोशीमठ को बचाने का एक ही तरीका है कि उसे कही और बसाया जाय और जोशीमठ शहर को प्रकृति के साथ बांधकर रखने का प्रयास किया जाय ताकि वह शहर भी जिंदा रह सके।
धन्यवाद

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शशि धर कुमार।